अनुभूति में ऋषभदेव शर्मा
की रचनाएँ-
नयी तेवरियों में-
पकने लगी फसल
मार्च आँधी
यह डगर कठिन है
यह समय है झूठ का
राजा सब नंगे होते
मुक्तक में-
बत्तीस मुक्तक
क्षणिकाओं में-
बहरापन (पाँच क्षणिकाएँ)
छंदमुक्त में-
दुआ
मैं झूठ हूँ
सूँ साँ माणस गंध
तेवरियों में-
रोटी दस तेवरियाँ
लोकतंत्र दस तेवरियाँ
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यह समय है झूठ का
यह समय है झूठ का, अब साँच को मत देख!
देख मत पंचायतों को, जाँच को मत देख!!
नेपथ्य से नाटक चलाता धूर्त निर्देशक;
तू थिरकती पुतलियों के नाच को मत देख!
हाथ उसके की सफाई को पकड़ना है अगर;
तो लहरती उँगलियों के नाच को मत देख!
आग का दरिया तिरेगी, भूमि की बेटी;
तू नज़र उस पार रख, इस आँच को मत देख!
साँस जब तक शेष है, नाचना होगा यहाँ;
पाँव में जो चुभ रहा, उस काँच को मत देख!
१ सितंबर २०२३ |