अनुभूति में ऋषभदेव शर्मा
की रचनाएँ-
नयी तेवरियों में-
पकने लगी फसल
मार्च आँधी
यह डगर कठिन है
यह समय है झूठ का
राजा सब नंगे होते
मुक्तक में-
बत्तीस मुक्तक
क्षणिकाओं में-
बहरापन (पाँच क्षणिकाएँ)
छंदमुक्त में-
दुआ
मैं झूठ हूँ
सूँ साँ माणस गंध
तेवरियों में-
रोटी दस तेवरियाँ
लोकतंत्र दस तेवरियाँ
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पकने लगी फसल
पकने लगी फसल, रीझता किसान
जल्दी पकी फसल, रीझता किसान
ली सेठ ने खरीद, पैसे उछाल कर
खेतों खड़ी फसल, रीझता किसान
कर्जा उतर गया, सिर पर लदा हुआ
अच्छी हुई फसल, रीझता किसान
दो रोटियाँ मिलें, दो वक़्त के लिए
कुछ तो बची फसल, रीझता किसान
जो पौध गल गई थी, खाद बन गई
आई नई फसल, रीझता किसान
१ सितंबर २०२३ |