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अनुभूति में ऋषभदेव शर्मा की रचनाएँ-

क्षणिकाओं में-
बहरापन (पाँच क्षणिकाएँ)

छंदमुक्त में-
दुआ
मैं झूठ हूँ
सूँ साँ माणस गंध

तेवरियों में-
रोटी दस तेवरिया
लोकतंत्र दस तेवरियाँ

 

हरापन : पाँच कविताएँ


क :
शोर है, हंगामा है;
लोग
ताबड़तोड़ पीट रहे हैं
मेजें
और सोच रहे हैं
हिंदुस्तान
बहरा है!

दो :
सडकों पर
उतर आई है भीड़,
जनता
नक्कारे पीट रही है,
पूछता है कबीर-
बहरे हो गए क्या
खुदा
लोकतंत्र के!

तीन :
दीवारों ने सुन ली,
तारों ने भी सुन ली,
केवल तुमने नहीं सुनी
मेरे मन की बात;
आखिर
तुम ठहरे
जन्मों के बहरे!

चार :
बहुत दिन
सहा मैंने,
सुनती रही चुपचाप,
झेलती रही
मारकाट सारी,
पर तुम तो उतारू हो गए
मेरी पहचान मेटने पर;
चिल्लाओ मत,
बहरी नहीं हूँ मैं;
और आज से
गूँगी भी नहीं!

पाँच :
धूल, धुआँ, गुब्बार,
तेज़ाब ही तेज़ाब,
रेडियोधर्मी विकिरण -
तपता हुआ
ब्रह्माण्ड का गोला;
फटने लगे हैं
अंतरिक्ष के कानों के परदे,
चीखती है निर्वसना प्रकृति
......और......
दिशाएँ बहरी हैं!

१८ अप्रैल २०११

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