नासमझ
जो मन में उमड़ा
वहा
वहाँ तूफान था
शब्दों में ढला
तो उसे शैम्पेन का प्याला
समझ कर
सहजता से पी गये तुम!
जो दीप्त था
दावानल था
आँखों से उतरा-
तो सपना समझकर
जी गये तुम!
जो चीख रहा था
वह सत्य था- वेदना में बदला
जो चीख रहा था
वह सत्य था
जो चीख रहा था
वह सत्य था आसावरी समझ कर
गा गये तुम !
जो बीत गये
वे हम थे- वर्तमान हुये
भविष्य समझकर
रो दिये तुम !
यह कैसी जागृति है
जिस में
सो गये तुम!
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