चम्मचभर मैं
एक के बाद
एक के बाद
एक और दरवाज़ा
हर दरवाज़े से
झाँकती हुई
आँखें भर चाँदनी-
और उस के पीछे भागती हुई
मेरी बोझिल आँखें !!
एक खिड़की के बाद
एक और काँच की खिड़की।
और उस के पीछे भागती हुई
मेरी बोझिल आँखें
और उस के पीछे भागती हुई
मेरी बोझिल आँखें हर खिड़की से
सुनाई देनेवाली
आकाश के बिखरे टुकड़ों की
अनसुनी आवाज़ !!
गंध फिर एक
गंध की बंद दीवार
हर दीवार पर खिला हुआ
बेला का फूल
फूल से टूटती हुई
गन्ध की पंखुड़ी
और गंध में डूबा हुआ
मेरा गंधहीन मन!
कही-अनकही
बातें
और बातें
फिर और
हर बात में ढला हुआ चम्मचभर
अक्षर मैं
हर चम्मच से
उगते हुए फिर
दरवाज़े खिड़कियाँ
आकाशफूल बातें -
और अपने लिये बचा हुआ
बस चम्मचभर मैं।
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