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अनुभूति में राजेश्वरी पांढरीपांडे की
रचनाएँ -

:छंदमुक्त में-
अपनापन
अभिमानी
उतना ही
खो दिये
चम्मचभर मैं
नासमझ
ये रिश्ते

 

खो दिये

माँग ली थी मैंने
थोड़ी सी रात उधार
समय के कंजूस सौदागर से
ताकि सारे चाँदनी के बीज बो दूँ
तुम्हारे आने तक चाँदनी की बेल फैल जाये
सारे आकाश पर
पर तुम आये नहीं
सारा आकाश सूख गया
दोपहर की गरमी तक
बूढ़े सौदागर ने कहा
हँस कर
"रात तो मैं फिर भी उधार दे दूँ
पर
चाँदनी के बीज जो तुमने खोये
कहाँ से फिर लाओगी
कहाँ से?

 

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