अभिमानी
जलाने पर
जल दिये
इसलिये
कहे गये
दिए- रास्ते के !
बुलाने पर
आ गये
इसलिये
कहे गये
पाहुन पहचान के !
तोड़ने पर
टूट गये
इसलिये
कहे गये
फूल- बेला के!
मनाने पर
मान गये
इसलिये
कहे गये
मीत मानस के!
जो जले नहीं
आये नहीं
मानस के
जो जले नहीं
टूटे नहीं
माने भी नहीं
क्या उनके पास से
गुज़र जाओगे
चुपचाप
बिना कहे कुछ भी
अपने आप?
|