शब्द की हथेलियों
में
बड़ा मुश्किल होता हैं
खुद को व्यक्त करना
या कि अपने भीतर उगते
निशानों को नाम देना
हम थकने लगे हैं
खुद से
बार-बार रोना-रोते असमर्थता का
फँस जाते हैं
दमघोंट सुरंगों में
खोजते हैं सत्य
सारे अंदाजे झुठलाता वह
दिखाई देता हैं चौराहे पर
अलग-अलग शक्लों में
फिर धुएँ में तब्दील
ओझल हो जाता है
अनंत विस्तार में
एक दिन
झरेगा वह
अमृत बनकर
शब्द की हथेलियों में।
बिना पाल वाली नाव
एक मौन और चीख के बीच
मौजूद है संवाद।
विद्रोह और पीड़ा में
जुड़ा है तनाव,
उदासी जमीं है
सारी अव्यवस्था और
झुंझलाहट में।
नहीं कह पाने की
शिथिलता
और जता नहीं पाने की
कायराना चुप्पी के बावजूद
हँसी बिखरी है
चेहरे पर।
मुझे झिंझोड़ रही हैं
वे आवाज़ें
जिनके शब्द ध्वनियों को छोड़ आए हैं
बहुत पीछे।
अपनी पारंपारिक तरलता में डूबते उतराते
शिथिल होती चपलता को उसी तरह देखने को
अभिशप्त हूँ
जैसे तूफ़ान के बीच फँसी
बिना पाल वाली नाव।
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