कविताओं में अधिकार नीड़ बिना पाल वाली नाव बसंत के इंतज़ार में मैं तुम्हारी बेटी हूँ शब्द की हथेलियों में
जिसके पास अधिकार है वह समझता है अलादीन का चिराग
रगड़ता है बारम्बार धरती से फिर उम्मीद करता है उस जिन्न की निकलेगा जो धुएँ से और कहेगा क्या हुक्म है मेरे आका
वह बदल देगा पल भर में धरती को आसमान में आसमान को धरती में।
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