अनुभूति में
डॉ. पद्मा सिंह की रचनाएँ
कविताओं में
अधिकार
नीड़
बिना पाल वाली नाव
बसंत के इंतज़ार में
मैं तुम्हारी बेटी हूँ
शब्द की हथेलियों में |
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बिना पाल वाली नाव
एक मौन और चीख के बीच
मौजूद है संवाद।
विद्रोह और पीड़ा में
जुड़ा है तनाव,
उदासी जमीं है
सारी अव्यवस्था और
झुँझलाहट में।
नहीं कह पाने की
शिथिलता
और जता नहीं पाने की
कायराना चुप्पी के बावजूद
हँसी बिखरी है
चेहरे पर।
मुझे झिंझोड़ रही हैं
वे आवाज़ें
जिनके शब्द ध्वनियों को छोड़ आए हैं
बहुत पीछे।
अपनी पारंपारिक तरलता में डूबते उतराते
शिथिल होती चपलता को उसी तरह देखने को
अभिशप्त हूँ
जैसे तूफ़ान के बीच फँसी
बिना पाल वाली नाव।
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