अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मनोज शर्मा की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
एक आस्था और
गुफ्तगू
पतंग
वे हमारे हक़ में हैं
समुद्र (६ कविताएँ)
 

 

एक आस्था और

जब तक खेतों की हरियाली
बाबा बंतु को
लाले की हट्टी में तौलती रहेगी
जब तक बचना दिहाड़ीदार
देसी शराब के चपटे में गर्क होता आएगा
जब तक प्रत्येक तोतला सवाल
नंगा कूद मचाएगा
जब तक रमालो की
पैबंद और लाज में होड़ चलेगी
जब तक वृक्ष-वृक्ष में हरी पत्तियां फूट नहीं पड़तीं
जब तक बूँद-बूँद रिसता क़तरा
समुद्र हो जाने के अर्थ नहीं पहचानता
मैं आऊँगा --

मैं आऊँगा कि जब तक
बुलंदी पर पहुँचाने वाले
ढलान का दर्शन पकड़ाते रहेंगे
यकीनन
मैं आऊँगा --

मैं आऊँगा और पत्ती-पत्ती गुलाब हो उठेगी
शोर के तिलिस्म को चीर संगीत फूट पड़ेगा
उम्मीदों की घास पसर जाएगी
मैं आऊँगा और दरख्त सूखना बंद कर देंगे

मैं आऊँगा --
और उस प्रत्येक के साथ हो जाऊँगा
जो वक्त की मार पर
स्वयं को पलीता लगाए बैठा है
मुर्दा जलाने से जगाने की साधना तक बढ़ता है
और अपने ही हाथों नथा जाता है
मैं आऊँगा और दिमागों में घुस जाऊँगा

मैं, दरअसल कुछ भी नहीं
केवल शपथ उठाने का हौसला हूँ
मैं दरअसल
सपनों को अर्थ देने की कोशिश हूँ
मैं दरअसल यह बताने का मापदंड हूँ कि
कितनी ऊँचाई के बाद ढलान शुरू हो जाती है

मैं दरअसल
हाड़ी के लिए बादलों की चाह जैसा हूँ
क्वार की महक में
माहिए की तान जैसा
फौजी बेटे की पहली छुट्टी में
बाप के आराम जैसा हूँ
मैं उस सभी जैसा हूँ
जहाँ काम और आराम साथ-साथ चलते हैं

मैं आऊँगा और
आटा पकने की गंध सा
प्रत्येक खौफ के विरूद्ध फैल जाऊँगा।

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter