अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मधु मोहिनी उपाध्याय की रचनाएँ

गीतों में—
क्या बतलाएँ दिल की बातें
थक कर बैठ न जाना राही
बेटियाँ
सपने में रंग गई कान्हा के रंग

अंजुमन में--
सागर खारा पाया क्यों

हास्य व्यंग्य में—
मधु की जगह माध्वी बन जाएँ
कुत्ता मंद-मंद मुस्कान फेंकता
 

 

सागर खारा पाया क्यों?

इतना प्यार जताया क्यों?
व्यर्थ हमें भरमाया क्यों?

हम सपने से ही खुश थे,
सच हमको दिखलाया क्यों?

ढाई अक्षर अक्षर हैं,
लंबा पाठ पढ़ाया क्यों?

हम पहले से मीठे थे,
रस में हमें डुबाया क्यों?

दुगुना करके भाग दिया,
जुड़कर हमें घटाया क्यों?

हमें प्यास ही प्यारी थी,
नेह बिंदु बरसाया क्यों?

जिनके फल ज़हरीले हैं
ऐसा वृक्ष लगाया क्यों?

कामनाएँ थी कुंभकरण,
तुमने उन्हें जगाया क्यों?

ये सच है या वो सच है,
समझ न आई माया क्यों?

रास न आया जो जग को,
ऐसा रास रचाया क्यों?

सुप्त पड़ी थी जो वीणा,
सुर में उसे सजाया क्यों?

सप्त सुरों को प्रान दिए,
गान विरह का गाया क्यों?

मधु सुगंध भरकर तुमने,
कंटक जाल बिछाया क्यों?

जगने से बेहतर सपने,
फिर – फिर हमें जगाया क्यों?

गंगा कितनी मीठी है,
सागर खारा पाया क्यों?

1 सितंबर 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter