सागर खारा पाया क्यों?
इतना प्यार जताया क्यों?
व्यर्थ हमें भरमाया
क्यों?
हम सपने से ही खुश थे,
सच हमको दिखलाया क्यों?
ढाई अक्षर अक्षर हैं,
लंबा पाठ पढ़ाया क्यों?
हम पहले से मीठे थे,
रस में हमें डुबाया क्यों?
दुगुना करके भाग दिया,
जुड़कर हमें घटाया क्यों?
हमें प्यास ही प्यारी थी,
नेह बिंदु बरसाया क्यों?
जिनके फल ज़हरीले हैं
ऐसा वृक्ष लगाया क्यों?
कामनाएँ थी कुंभकरण,
तुमने उन्हें जगाया क्यों?
ये सच है या वो सच है,
समझ न आई माया क्यों?
रास न आया जो जग को,
ऐसा रास रचाया क्यों?
सुप्त पड़ी थी जो वीणा,
सुर में उसे सजाया क्यों?
सप्त सुरों को प्रान दिए,
गान विरह का गाया क्यों?
मधु सुगंध भरकर तुमने,
कंटक जाल बिछाया क्यों?
जगने से बेहतर सपने,
फिर – फिर हमें जगाया क्यों?
गंगा कितनी मीठी है,
सागर खारा पाया क्यों?
1 सितंबर 2007
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