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क्या बतलाएँ दिल की बातें
ना सोने से दिन लगते अब, ना चाँदी-सी रातें हैं
क्या बतलाएँ, किसे सुनाएँ, दिल में कितनी बातें हैं
पतझड़ भी मधुमास बना था, इक दूजे की बाँहों में
तन-मन महके-महके थे जब फूल खिले थे राहों में
तुम बिन बदली-बरखा-सावन, बरस-बरस तरसाते हैं
तेज़ भागती रेल ज़िंदगी, पीछे सब कुछ छूट गया
ऐसा झटका दिया वक़्त ने, दर्पण-सा दिल टूट गया
आँसू अक्षर-अक्षर बनकर, छंद-गीत लिखवाते हैं
बरसाती आँखें तो पल-पल, राह तुम्हारी सींच रहीं
साँसे अटकी-अटकी-सी हैं, लगता तुमको खींच रहीं
अंबर से चंदा और तारे अंगारे बरसाते हैं
होठों ने हाथों पर मेरे, जिस दिन अक्षर प्यार लिखा
लाज से फिर रंग गई हथेली, स्वर्ग-सा ये संसार दिखा
भीगी पलकें, सूखी अलकें, मिली चंद सौग़ातें हैं
जाने कब वे दिन आएँगे, दूर करेंगे तनहाई
बस सपने में ही बज उठती, मेरे मन की शहनाई
जग सूना है, दुःख दूना है, यादों की बारातें हैं
युगों-युगों का साथ हमारा, ये दूरी क्या दूरी है
बरसों पहले भरी थी तुमने, माँग मेरी सिंदूरी है
मौत जुदा ना कर पाएगी, जनम-जनम के नाते हैं
1 सितंबर 2007
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