मधु की जगह माध्वी बन जाएँ
संत – महात्माओं के राजसी ठाठ देख
यह इच्छा हुई
कि कविता छोड़ साध्वी बन जाएँ
मधु की जगह माध्वी बन जाएँ
लाखों की कुटिया सजवाएँगे
अपनी विद्वत्ता के नगाड़े बजवाएँगे
जनता की भावनाएँ कैश करेंगे
साध्वी के रूप में ऐश करेंगे
तुलसी का लिखा हम सेल करेंगे
पब्लिक को इमोशनली ब्लैकमेल करेंगे
मंच पर एकछत्र हमारा ही राज्य होगा
देश हो या विदेश अपना साम्राज्य होगा
वहाँ हूट होने का भी भय नहीं होगा
क्योंकि राम-नाम की लूट होगी
पुरुष हो या स्त्री
सभी को साष्टांग प्रणाम की छूट होगी
वैसे भी नोटों के लिए
और वोटों के लिए तो
राम-नाम अचूक-बाण है
क्योंकि इसके बिना जीवन निष्प्राण है
मैंने कहा यदि आपको
देवियों या कन्याओं का साथ चाहिए
और हस्तरेखा दर्शन के लिए
सुकोमल हाथ चाहिए तो
संत का वेष धारण कर लीजिए
मनोकामनाओं का निवारण कर लीजिए
वर्तमान तो आनंददायी रहेगा
लेकिन भविष्य और भूत आपके
भूत बनने की सच्ची कहानी कहेगा
1 सितंबर 2007
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