मेरी उम्र सिर्फ
उतनी है मेरी उम्र सिर्फ
उतनी है
जितनी
तुम्हारे साथ बिताई थी
तब
जब तुम आजाद थे
शहजादा सलीम थे
मजनू फरिहाद थे
रांझा महिवाल थे
पुरुषीय अहं से
परिवार-समाज से
बड़े-बड़े झूठों से
बिल्कुल अनजान थे।
मेरी उम्र सिर्फ उतनी है
जितनी
मैंने
तुम्हारे हरम में आने से पहले
मनाई थी
कालेज केन्टीन में
कॉफी के धुएँ में
लेट नाइट चैट्रिग में।
बहसें-तकरार थे
समस्या-समाधान थे
तेरे और मेरे के
झंझट न झाड़ थे।
मेरी उम्र सिर्फ उतनी है
जितनी में
मान-सम्मान था
निर्णय की क्षमता थी
नेह-विश्वास था
साँचों में ढलने की
शर्तें प्रतिमान न था
जा जा कर लौटते थे
मैंने नहीं खींचा था
आते-बतियाते थे
सचमुच में चाहते थे।
मेरी उम्र सिर्फ उतनी है
जितनी अनामिका की अंगूठी से
सिंदूरबाजी से,
मंगलसूत्र धारणा से पहले
घूँट-घूँट पी थी।
व्यक्ति से वस्तु बनने
तुम्हारी अचल सम्पत्ति में ढलने
गुस्से, रतजगों, आँसुओं में घुलने
विरोधाभासों में जीने
व्यक्तिवाचक से शून्यवाचक हो जाने से पहले
स्वप्न लोक में जी थी।
तब
एक सहलाता अकेलापन था
मीठी वेदना थी
प्रेम का भ्रम था
पाने की चाह थी
पहचाना अपरिचय था
वज्र विश्वास था
सुखद प्रतीक्षा थी
भविष्य का सूर्य था
क्यों तोड़ दिए सारे सपने नींद सहित तुमने।
१९ अप्रैल २०१० |