धूप पानी में
धरती कितनी खुशनसीब है
कि उसे
अपनी भूख प्यास के लिए
मशक्कत
नहीं करनी पड़ती।
रोटी रोजी के लिए
बौद्धिक भूख के लिए
सामाजिक अस्तित्व के लिए
वैयक्तिक अहं के लिए
स्व: स्थापना के लिए
मैं की प्रस्थापना के लिए
भटकना नहीं पड़ता।
वह आराम से लेटी रहती है
और
अपने आप बीज
फूटते हैं
संतति लहलहाती है।
धरती बहुत खुशनसीब है
खुद बरसात आती है
हवा सरसराती है
धूप कुपमुनाती है
अपने पाँवों चल चल कर।
धरती सच खुशनसीब है
कि
उसे न धैर्य की शिक्षाएँ दी जाती हैं
न उपचार के
डाक्टरी सैशन लगते हैं
न पीड़ा के बवंडर उठते हैं
न चाल ढाल
बदलती है
न रुग्णता-मृत्यु का
संत्रास घेरता है।
खुशनसीब ही है
कि वह धरती माँ है।
पर
जो प्रजनन वेदना
औरत झेलती है
जो संतति सुख
औरत घेरती है
उसकी कोई तुलना नहीं
कोई तुलना नहीं।
१९ अप्रैल २०१० |