अनुभूति में
कुँअर रवीन्द्र की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
औरत
किसी नगर के भग्नावशेषों मे
तुम्हारा होना या न
होना
मेरे सामने
मैंने तुम्हें
छंदमुक्त में-
बस्तर-एक
बस्तर-दो
तुम्हारा पत्र
यादें |
|
मैंने कभी
तुम्हें
मैंने कभी भी तुम्हें
कैनवास पर चित्रित नहीं किया
न रंग भरा उन दृश्यों में
जहाँ तुम थे
फिर भी
हर फ्रेम में तुम हो
जहाँ होना चाहिए
और जहाँ नहीं भी होना चाहिए
शायद सारे दृश्य अधूरे हैं
तुम्हारे बिना
फ्रेम के भीतर तुम्हारा न होना
उसी तरह है
जिस तरह चित्रों में रंगों का न होना
फ्रेम के भीतर
रंगों की कोई आकृति नहीं होती
होते हैं आकृतियों के रंग
मेरे सारे रंग
पूरा फ्रेम ही तो तुम हो
२४ दिसंबर २०१२ |