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बस्तर-एक
बस्तर-दो
तुम्हारा पत्र
यादें

 

मैंने कभी तुम्हें

मैंने कभी भी तुम्हें
कैनवास पर चित्रित नहीं किया
न रंग भरा उन दृश्यों में
जहाँ तुम थे
फिर भी
हर फ्रेम में तुम हो
जहाँ होना चाहिए
और जहाँ नहीं भी होना चाहिए

शायद सारे दृश्य अधूरे हैं
तुम्हारे बिना
फ्रेम के भीतर तुम्हारा न होना
उसी तरह है
जिस तरह चित्रों में रंगों का न होना

फ्रेम के भीतर
रंगों की कोई आकृति नहीं होती
होते हैं आकृतियों के रंग

मेरे सारे रंग
पूरा फ्रेम ही तो तुम हो

२४ दिसंबर २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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