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अनुभूति में डॉ. जगदीश व्योम की रचनाएँ—

कविताओं में—
अक्षर
छंद
रात की मुट्ठी
सो गई है मनुजता की संवेदना
हे चिर अव्यय हे चिर नूतन

गीतों में—
आहत युगबोध के
इतने आरोप न थोपो
न जाने क्या होगा
पीपल की छाँव
बाज़ीगर बन गई व्यवस्था
हाइकु नवगीत

दोहों में—
ग्यारह दोहे

हाइकु में-
सात हाइकु

संकलन में—
तुम्हें नमन- किसकी है तस्वीर
नव वर्ष अभिनंदन-– दादी कहती हैं
हिंदी के 100 सर्वश्रेष्ठ प्रेमगीत- पिउ पिउ न पपिहरा बोल

 

न जाने क्या होगा

सिमट गई
सूरज के रिश्तेदारों तक ही धूप
न जाने क्या होगा

घर में लगे उकसने काँटे
कौन किसी का क्रंदन बाँटे
अँधियारा है गली गली
गुमनाम हो गई धूप
न जाने क्या होगा

काल चक्र रट रहा ककहरा
गूँगा वाचक, श्रोता बहरा
तौल रहे तुम, बैठ-
तराजू से दुपहर की धूप
न जाने क्या होगा

कंपित सागर डरी दिशाएँ
भटकी भटकी सी प्रतिभाएँ
चली ओढ़ कर अंधकार की
अजब ओढ़नी धूप,

न जाने क्या होगा

घर हैं अपने चील घोंसले
घायल गीत जनम कैसे लें
जीवन की अभिशप्त प्यास
भड़का कर चल दी धूप
न जाने क्या होगा

सहमी सहमी नदी धार है
आंसू टपकाती बहार है
भटके को पथ दिखलाकर, खुद-
भटक गई है धूप
न जाने क्या होगा

समृतिमय हर रोम रोम है
एक उपेक्षित शेष व्योम है
क्षितिज अँगुलियों में फँस कर फिर
फिसल गई है धूप
न जाने क्या होगा

बलिदानी रोते हैं जब जब
देख-देख अरमानों के शव
मरघट की वादियाँ
खोजने लगीं
सुबह की धूप
न जाने क्या होगा

1 अप्रैल 2005

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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