हे चिर
अव्यय! हे चिर नूतन!
(श्री सुमित्रानंदन पंत जी के प्रति)
कण-कण तृण-तृण में
चिर निवसित
हे! रजत किरन के अनुयायी
सुकुमार प्रकृति के उद्घोषक
जीवंत तुम्हारी कविताई
फूलों के मिस शत वार नमन
स्वीकारो संसृति के सावन
हे चिर अव्यय!
हे चिर नूतन!!
बौछारें धारें जब आतीं
लगता है तुम नभ से उतरे
चाँदनी नहीं है पत्तों पर
चहुँ ओर तुम्हीं तो हो बिखरे
तारापथ के अनुगामी का
कर रही धरा है मूक नमन
हे चिर अव्यय!
हे चिर नूतन!!
सुकुमार वदन' सुकुमार नयन
कौसानी की सुकुमार धूप
पूरा युग जिसमें संदर्शित
ऐसे कवि के तुम मूर्तरूप
हैं व्योम पवन अब खड़े लिए
कर में अभिनंदन पत्र नमन
हे चिर अव्यय!
हे चिर नूतन!!
24 मई 2005
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