अनुभूति में
देवेन्द्र रिणवा की रचनाएँ-
कविताओं में-
और शब्द भी हैं
कुरेदा नहीं जाता जब अलाव
दुहरा हुआ जाता है पेड़
परछाँई
बीमार
यह जो तरल है
याद नहीं आता
हाँ नहीं
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याद नहीं आता
जैसे
याद नहीं आता
कि कब पहनी थी
अपनी सबसे प्यारी कमीज़
आख़री बार
कि क्या हुआ उसका हश्र?
साइकल पोंछने का कपडा बनी
छीजती रही मसोता बन
किसी चौके में
कि टंगी हुई है
किसी काकभगोड़े की
खपच्चियों पर
याद यह भी नहीं आता
कि पसीने में सनी
कमीज़ की तरह
कई काम भी
गर्द फांक रहे हैं
अटाले में
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