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अनुभूति में देवेन्द्र रिणवा की रचनाएँ-
कविताओं में-
और शब्द भी हैं
कुरेदा नहीं जाता जब अलाव
दुहरा हुआ जाता है पेड़
परछाँई
बीमार
यह जो तरल है
याद नहीं आता
हाँ नहीं
 

 

हाँ-नहीं

हाँ बोलने में
जितनी लगती है
ठीक उससे दुगुनी ताक़त लगती है
नहीं बोलने में

हाँ बोलना यानि
शीतल हवा हो जाना
नहीं बोलना यानि
गरम तवा हो जाना

हाँ बोलने के बाद
कुछ भी नहीं करना होता है
बस मरना होता है
नहीं बोलने के बाद
लड़ना और भिड़ना होता है

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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