अनुभूति में
देवेन्द्र रिणवा की रचनाएँ-
कविताओं में-
और शब्द भी हैं
कुरेदा नहीं जाता जब अलाव
दुहरा हुआ जाता है पेड़
परछाँई
बीमार
यह जो तरल है
याद नहीं आता
हाँ नहीं
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परछाँई
अन्धेरे से बनी होती है
इसकी देह
जितना तेज प्रकाश
उतनी गहरी परछाई
इतनी डरपोक और शातिर
कि आंख नहीं मिलाती
ठीक पीछे खड़ी होती है
दुबक जाती है पंाव तले
जब आ खड़ा होता है
प्रकाश माथे पर
कमज़ोर और लम्बवत्
जब हो जाता है प्रकाश
यह लम्बी हो जाती है
सुरसा की तरह
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