अनुभूति में
देवेन्द्र रिणवा की रचनाएँ-
कविताओं में-
और शब्द भी हैं
कुरेदा नहीं जाता जब अलाव
दुहरा हुआ जाता है पेड़
परछाँई
बीमार
यह जो तरल है
याद नहीं आता
हाँ नहीं
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बीमार
रात एक लम्बी जेल
सज़ा
नींद का न आना
ऐसे में
धीरे से बदलना करवट
दर्द को जज़्ब कर जाना
रोक देना कराह को
होठों की सीमा के अन्दर
दबे पंाव उठकर
पी लेना पानी
कि सोया है पास कोई
खलल न हो
बीमारी से ग्रस्त
आदमी के भीतर
है कोई
जो बीमार नहीं है |