अनुभूति में
विनोद
तिवारी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
कुछ इस क़दर
चलते जाने का धर्म
ज़मीन पाँव तले
सड़कें भरीं
हर दिशा
में
अंजुमन में-
आपस में लड़कर
काल की तेज़ धारा
देखे दुनिया जहान
पल निकल जाएँगे |
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ज़मीन पाँव तले
ज़मीन पाँव तले आसमान सर पर है
हज़ारों साल से ये कारवाँ सफ़र पर है
इन्हें उम्मीद है महलों से भीख पाने की
कि इनकी सोच की सीमा बस एक छप्पर है
किसी ने भूख से फ़ुटपाथ पे दम तोड़ दिया
जवाब दो कि ये इल्ज़ाम किसके सिर पर है
भले ही रोज़ दिवाली मना के ख़ुश हो लो
अँधेरा वास्तव में आदमी के सिर पर है
विकास हो रहा है,सच है मगर हमवतनो!
अभी तो देश का अधिकाँश भाग बस्तर है
२८ फरवरी २०११ |