अनुभूति में विनोद
तिवारी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
कुछ इस क़दर
चलते जाने का धर्म
ज़मीन पाँव तले
सड़कें भरीं
हर दिशा
में
अंजुमन में-
आपस में लड़कर
काल की तेज़ धारा
देखे दुनिया जहान
पल निकल जाएँगे |
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आपस में लड़कर
आपस में लड़कर अक्सर घायल हो जाते
हैं
इस बस्ती के रहवासी, पागल हो जाते हैं।
धीरज के किस्से इनके, इतिहास बताता है
पर मामूली बातों पर, दंगल हो जाते हैं।
क्या जाने कैसा जूनून है सिर चढ़ जाता है
ये मन के वृंदावन हैं, जंगल हो जाते हैं।
चलती है नफ़रत की आँधी, खून टपकता है
दृश्य प्रेम के, करुणा के, ओझल हो जाते हैं।
२० जुलाई २००९ |