अनुभूति में विनोद
तिवारी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
कुछ इस क़दर
चलते जाने का धर्म
ज़मीन पाँव तले
सड़कें भरीं
हर दिशा
में
अंजुमन में-
आपस में लड़कर
काल की तेज़ धारा
देखे दुनिया जहान
पल निकल जाएँगे |
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काल की तेज़ धारा
काल की तेज़ धारा से कट कर कटी
उम्र बस लम्हों लम्हों में बँट कर कटी।
कामना कल्पनाओं का विस्तार थी
क्षीण संभावना में सिमट कर कटी।
कितने सपने संजोये हुए रात थी
रात की नींद लेकिन उचट कर कटी।
खिलखिलाता हुआ सिर्फ़ तूफ़ान था
कश्तियों की कहानी उलट कर कटी।
सबके सब एक ढर्रे पे चल के जिए
अपनी तो लीक से थोड़ा हट कर कटी।
अंत जब भी हुआ, बस अचानक हुआ
ज़िंदगी मौत के साथ सट कर कटी
२० जुलाई २००९ |