अनुभूति में विनोद
तिवारी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
कुछ इस क़दर
चलते जाने का धर्म
ज़मीन पाँव तले
सड़कें भरीं
हर दिशा
में
अंजुमन में-
आपस में लड़कर
काल की तेज़ धारा
देखे दुनिया जहान
पल निकल जाएँगे |
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हर दिशा में
हर दिशा में घने कुहासे हैं
हम नदी-तट पे रह के प्यासे हैं
आपने आजतक नहीं पूछा
कौन हैं क्या हैं हम कहाँ से हैं
क्रांतियाँ और अपाहिजों का शहर
लोग बेवजह बदगुमाँ से हैं
आप जो भोज दे रहे थे हमें
उसकी आशा में हम उपासे हैं
हम तो सेवक हैं आपसे क्या कहें
जो शिकायत है आसमाँ से है
आप बहरे हैं ये है मजबूरी
और हम लोग बेज़ुबाँ-से हैं
२८ फरवरी २०११ |