अनुभूति में
विजय प्रताप आँसू
की रचनाएँ-
नयी रचनाएँ-
कुछ कमाल होने दो
निर्भया के बाद भी
पंख फड़फड़ाता हूँ
वक्त सा हुनर दे दो
सवाल उठाती है जिंदगी
अंजुमन में-
कुछ साजिशों से जंग है
ग़ज़ल में दर्द की तासीर
सब्र उनका भी
सर बुलन्द कर गया
हर गाम पर |
|
वक्त सा हुनर दे दो
मेरी यादों को इक सफ़र दे दो
फिर कोई दर्द मुख्तसर दे दो
कुछ चिराग़ों ने सर उठाया है
फिर हवाओं को ये ख़बर दे दो
थक चुका हूँ मैं दर-ब-दर होते
अब तो अपना सा एक घर दे दो
जख्म सारे जहाँ के भर पाऊँ
मुझको भी वक्त सा हुनर दे दो
कोइ बीमार अब न हो ‘आँसू’
बस दुआओं में ये असर दे दो
१ मार्च २०१६ |