अनुभूति में
विजय प्रताप आँसू
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कुछ कमाल होने दो
निर्भया के बाद भी
पंख फड़फड़ाता हूँ
वक्त सा हुनर दे दो
सवाल उठाती है जिंदगी
अंजुमन में-
कुछ साजिशों से जंग है
ग़ज़ल में दर्द की तासीर
सब्र उनका भी
सर बुलन्द कर गया
हर गाम पर |
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कुछ कमाल होने दो
आज फिर कुछ कमाल होने दो
दर्द को बेमिसाल होने दो
पैरोकारी कमाल की उनकी
मुल्जिमों को बहाल होने दो
होगा बेताल डाल पर कब तक
विक्रमों से सवाल होने दो
पाँव उनके जमीन पर होंगे
जीत को चार साल होने दो
जनता कब तक जनार्दन होगी
हुजूर से ये सवाल होने दो
१ मार्च २०१६ |