अनुभूति में
प्रवीण पारीक अंशु की रचनाएँ—
गीतों में-
अब चिता में
कौन दूसरा समझेगा
गीत नया मैं गाता हूँ
या तो मुझको
हल्की धूप
अंजुमन में—
दीवानों का हाल
शायरी की किताब
सागर में हूँ
सुर में गीत
है कौन
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कौन दूसरा समझेगा
कौन दूसरा समझेगा, हम
खुद को ही समझाते अक्सर
आज यहाँ जीवन में अपने
रिश्तों से निभती है ऐसे
टूटी- उधड़ी चप्पल पहने
राहों पर चलते हों जैसे
लाख बचाकर पैर रखें, पर
कांटे चुभ ही जाते अक्सर
पढ़ले अंतर्मन की भाषा
किसको इतना समय यहाँ है
कहने वाले इतने सारे
सुनने वाला कौन-कहाँ है
मन की बातें रखकर मन में
अब तो चुप रह जाते अक्सर
धुंध छँटेगी, धूल हटेगी
रवि के फिर से होंगे दर्शन
शूल कभी तो फूल बनेंगे
फिर से हर्षाएगा उपवन
अपने ही बेबस मन को अब
बच्चे - सा बहलाते अक्सर
१ फरवरी २०२४ |