अनुभूति में
प्रवीण पारीक अंशु की रचनाएँ—
अंजुमन में—
दीवानों का हाल
शायरी की किताब
सागर में हूँ
सुर में गीत
है कौन
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सागर में
हूँ सागर में हूँ,
लेकिन कश्ती जर्जर हूँ
अपने टूटे अरमानों का खंडहर हूँ
तू जो चाहे, उस मूरत में ढल जाऊँ
तुमने कैसे सोच लिया, मैं पत्थर हूँ ?
पागल, आशिक, शायर कैसे होते हैं
तेरे सारे प्रश्नों का मैं उत्तर हूँ
पाया है मैंने सब खा़रा ही खा़रा
ऐसे कहने को तो, एक समुंदर हूँ
कितनी उम्र बताऊँ तुमको मैं अपनी
सदियाँ भी मैं ही हूँ, मैं ही पल भर हूँ
शोर भरी है दुनिया की बस्ती बस्ती
मैं सहमा-सा खामोशी का मंजर हूँ
कौन बुलाना चाहेगा मुझको आखिर
बिन पानी का मैं आवारा जलधर हूँ
१ जून २०२३ |