अनुभूति में
प्रवीण पारीक अंशु की रचनाएँ—
गीतों में-
अब चिता में
कौन दूसरा समझेगा
गीत नया मैं गाता हूँ
या तो मुझको
हल्की धूप
अंजुमन में—
दीवानों का हाल
शायरी की किताब
सागर में हूँ
सुर में गीत
है कौन
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अब चिंता
में
अब चिंता में कब शामिल है
ज़िक्र यहाँ चावल-आटे का
जीवन भर की अर्जित खुशियाँ
मैंने ॠण पर दे दीं सारी
समय-समय पर किया तकादा
लेकिन लौट सकी न उधारी
अनजाने या जान-बूझकर
कारोबार किया घाटे का
उन साँपों से कैसे निपटें
आस्तीन में जो पलते हैं
कहने को अपने हैं लेकिन
पल प्रति-पल चालें चलते हैं
कहाँ भला उपचार मिलेगा
ऐसे सर्पों के काटे का
ऐसी चली समय की आँधी
छिन्न-भिन्न है सब शाखाएँ
निविड़ निशा में प्रश्न यही है
कहाँ रहें और रात बिताएँ
कौन भला प्रत्युत्तर देगा
रजनी के इस सन्नाटे का
१ फरवरी २०२४ |