अनुभूति में लोकेश नदीश की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
गिर रही है आँख से शबनम
जलते हैं दिल के ज़ख्म
ये तेरी जुस्तजू से
यों भी दर्दे गैर
यों मुसलसल जिंदगी से
अंजुमन में-
कड़ी है धूप
खोया है कितना
गजल कहूँ
दिल की हर बात
दिल मेरा
प्यार हमने
किया
बिखरी शाम सिसकता मौसम
मुझको मिले हैं ज़ख्म
रखता
नहीं है निस्बतें
वफ़ा का फिर
सिला धोखा
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ये तेरी जुस्तजू
ये तेरी जुस्तजू से मुझे तज़ुर्बा हुआ
मंज़िल हुई मेरी न मेरा रास्ता हुआ
खुशियों को कहीं भी न कभी रास आऊँ मैं
हाँ सल्तनत में दर्द की ये फैसला हुआ
मिट ना सकेगा ये किसी सूरत भी अब कभी
नज़दीकियों के दरम्यान जो फासला हुआ
जब से खँगालने चले तहखाने नींद के
अश्क़ों की बगावत में ख़्वाब था डरा हुआ
थी ज़िंदगी की कश्मकश कि होश गुम गए
कहते हैं लोग उसको कि वो सिरफिरा हुआ
है मेरा अपना हौसला परवाज़ भी मेरी
मैं एक परिन्दा हूँ मगर पर कटा हुआ
मजबूरियों ने मेरी न छोड़ा मुझे कहीं
मत पूछना ये तुझसे मैं कैसे जुदा हुआ
अब थम गया नदीश तेरी ख़िल्वतों का शोर
हाँ मिल गया है दर्द कोई बोलता हुआ
२३ मार्च २०१५ |