अनुभूति में लोकेश नदीश की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
गिर रही है आँख से शबनम
जलते हैं दिल के ज़ख्म
ये तेरी जुस्तजू से
यों भी दर्दे गैर
यों मुसलसल जिंदगी से
अंजुमन में-
कड़ी है धूप
खोया है कितना
गजल कहूँ
दिल की हर बात
दिल मेरा
प्यार हमने
किया
बिखरी शाम सिसकता मौसम
मुझको मिले हैं ज़ख्म
रखता
नहीं है निस्बतें
वफ़ा का फिर
सिला धोखा
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गिर रही है आँख से शबनम
गिर रही है आँख से शबनम तुम्हारे हिज़्र में
एक ही बस एक ही मौसम तुम्हारे हिज़्र में
क़तरे-क़तरे में शरारों सी बिछी है चाँदनी
बन गयी है हर ख़ुशी मातम तुम्हारे हिज़्र में
आईना-ओ-धूप के बिन अक्स ना साया मेरा
किस क़दर तनहा हूँ मैं हमदम तुम्हारे हिज़्र में
खो गयी है अब नज़र की तिश्नगी जाने कहाँ
अश्क़ में डूबा है ये आलम तुम्हारे हिज़्र में
दे भी जाओ अब सनम आकर सुकूँ दिल को मेरे
या बता जाओ करें क्या हम तुम्हारे हिज़्र में
तुम नहीं तो साँस भी भारी लगे है बोझ सी
यों ही निकलेगा लगे है दम तुम्हारे हिज़्र में
फ़िक्र-ए-दुनिया है न खुद की है ख़बर कोई मुझे
अब ख़ुशी है ना ही कोई ग़म तुम्हारे हिज़्र में
फूल उम्मीदों के सारे आज काँटे बन गए
हर क़दम पतझर का है मौसम तुम्हारे हिज़्र में
एक-एक लम्हा लगे है अब क़यामत सा नदीश
ख़्वाब भी होने लगे हैं नम तुम्हारे हिज़्र में
२३ मार्च २०१५ |