अनुभूति में लोकेश नदीश की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
गिर रही है आँख से शबनम
जलते हैं दिल के ज़ख्म
ये तेरी जुस्तजू से
यों भी दर्दे गैर
यों मुसलसल जिंदगी से
अंजुमन में-
कड़ी है धूप
खोया है कितना
गजल कहूँ
दिल की हर बात
दिल मेरा
प्यार हमने
किया
बिखरी शाम सिसकता मौसम
मुझको मिले हैं ज़ख्म
रखता
नहीं है निस्बतें
वफ़ा का फिर
सिला धोखा
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दिल मेरा
दिल मेरा जब लेकर तेरा नाम धड़कने लगता है
वीराँ-वीराँ आँखों में एक ख्वाब चमकने लगता है
साँसों की ही खातिर तुझको माँगा है इस जीवन ने
तुझको ना सोचे तो ये दिल यार मचलने लगता है
चुभ जाते हैं अश्क़ों के कांटे यादों के बिस्तर पे
नींदों का पतझर आकर बेज़ार दहकने लगता है
जुगनू, खुश्बू, चाँद-सितारे, बादल, गुलशन और फिज़ा
जब तुम मेरे पास न हो माहौल अखरने लगता है
कैसे हाल सुनाये अपने दिल का तुमको कहो नदीश
आँखों से आँसू बनकर ये दर्द छलकने लगता है
२ सितंबर २०१३ |