अनुभूति में लोकेश नदीश की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
गिर रही है आँख से शबनम
जलते हैं दिल के ज़ख्म
ये तेरी जुस्तजू से
यों भी दर्दे गैर
यों मुसलसल जिंदगी से
अंजुमन में-
कड़ी है धूप
खोया है कितना
गजल कहूँ
दिल की हर बात
दिल मेरा
प्यार हमने
किया
बिखरी शाम सिसकता मौसम
मुझको मिले हैं ज़ख्म
रखता
नहीं है निस्बतें
वफ़ा का फिर
सिला धोखा
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बिखरी शाम सिसकता मौसम
बिखरी शाम सिसकता मौसम
बेकल, बेबस, तनहा मौसम
तन्हाई को समझ रहा है
लेकर चाँद खिसकता मौसम
शब के आँसू चुनने आया
लेकर धूप सुनहरा मौसम
तेरी यादों की बूँदों से
ठंडा हुआ दहकता मौसम
धूप-छाँव बनकर नदीश की
ग़ज़लों में है ढलता मौसम
२ सितंबर २०१३ |