अनुभूति में लोकेश नदीश की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
गिर रही है आँख से शबनम
जलते हैं दिल के ज़ख्म
ये तेरी जुस्तजू से
यों भी दर्दे गैर
यों मुसलसल जिंदगी से
अंजुमन में-
कड़ी है धूप
खोया है कितना
गजल कहूँ
दिल की हर बात
दिल मेरा
प्यार हमने
किया
बिखरी शाम सिसकता मौसम
मुझको मिले हैं ज़ख्म
रखता
नहीं है निस्बतें
वफ़ा का फिर
सिला धोखा
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प्यार हमने किया
प्यार हमने किया जिंदगी की तरह
आप हरदम मिले अजनबी की तरह
मैं भी इन्सां हूँ, इन्सान हैं आप भी
फिर क्यों मिलते नहीं आदमी की तरह
मेरे सीने में भी इक धड़कता है दिल
प्यार यूँ न करें दिल्लगी की तरह
दोस्त बन के निभाई है जिनसे वफ़ा
दोस्ती कर रहे हैं दुश्मनी की तरह
हमको कोई गिला ग़म से होता नहीं
ग़र ख़ुशी कोई मिलती ख़ुशी की तरह
आज फिर से मेरे दिल ने पाया सुकूं
सोचकर आपको शायरी की तरह
ग़म की राहों में जब भी अँधेरे बढ़े
अश्क़ बिखरे सदा चांदनी की तरह
काश दिल को तुम्हारे ये आता समझ
इश्क़ मेरा नहीं हर किसी की तरह
याद आई है जब भी तुम्हारी 'नदीश'
तीरगी में हुई रौशनी की तरह
७ मई २०१२ |