अनुभूति में लोकेश नदीश की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
गिर रही है आँख से शबनम
जलते हैं दिल के ज़ख्म
ये तेरी जुस्तजू से
यों भी दर्दे गैर
यों मुसलसल जिंदगी से
अंजुमन में-
कड़ी है धूप
खोया है कितना
गजल कहूँ
दिल की हर बात
दिल मेरा
प्यार हमने
किया
बिखरी शाम सिसकता मौसम
मुझको मिले हैं ज़ख्म
रखता
नहीं है निस्बतें
वफ़ा का फिर
सिला धोखा
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जलते हैं दिल के ज़ख्म
जलते हैं दिल के ज़ख्म ये पाके दवा की आँच
होंठों को है जलाती मेरे अब दुआ की आँच
सोचा था ख्यालों से मिलेगा तेरे सुकून
लेकर गयी क़रार ये राहत-फ़ज़ा की आँच
सौदागरी नहीं है, ये है ज़िंदगी मेरी
रखिये अलग ही इससे नुक्सानो-नफ़ा की आँच
महफूज़ कहाँ रक्खूँ ये जज़्बात दिल के मैं
लगती है हर तरफ ही यहाँ तो ज़फ़ा की आँच
दरिया ये कोई आग का आई है करके पार
पिघला रही है मुझको ये ठंडी हवा की आँच
क्या हो गया है अब तेरे वादों की धूप को
इसमें बची नहीं है ज़रा भी वफ़ा की आँच
लेके "नदीश" अपने साथ बर्फ़-ए-दर्द चल
झुलसा ही दे न तुझको ये तेरी अना की आँच
२३ मार्च २०१५ |