अनुभूति में लक्ष्मी शंकर
वाजपेयी की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
अँधेरों के दिन
ढिठाई
रिश्तेदारी
विदाई
हाइकु में-
बारह हाइकु
अंजुमन में-
अपने ही हाथों में
आदमी के
साथ
एक कमरे में
खूब नारे उछाले गए
चाँद पूनम का
टूटते लोगों को
दर्द से
दामन
पगडंडियाँ बनाएँगे
भूली
यादों
वो दर्द वो बदहाली
पूछा था रात
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ढिठाई
वो एक मरियल-सा चींटा था
बल्कि चींटे का बच्चा था
तीन बार फेंका मैंने उसे दूर
उँगली से छिटककर
पर वह ढीठ चौथी बार भी
उसी रास्ते लौटकर बढ़ा मेरी ओर
और तब अचानक आया मुझे खयाल
हो सकता है, इसे पता हो
यही एकमात्र रास्ता अपने घर लौटने का
जहाँ प्रतीक्षा में बैठी हो उसकी माँ!
और मैंने जाने दिया उसे बेरोक-टोक।
४ फरवरी २०१३
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