अनुभूति में लक्ष्मी शंकर
वाजपेयी की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
अँधेरों के दिन
ढिठाई
रिश्तेदारी
विदाई
हाइकु में-
बारह हाइकु
अंजुमन में-
अपने ही हाथों में
आदमी के
साथ
एक कमरे में
खूब नारे उछाले गए
चाँद पूनम का
टूटते लोगों को
दर्द से
दामन
पगडंडियाँ बनाएँगे
भूली
यादों
वो दर्द वो बदहाली
पूछा था रात
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अँधेरों के दिन
बदल गए हैं अँधेरों के दिन
अब वे नहीं निकलते
सहमे, ठिठके, चुपके-चुपके रात के वक्त
वे दिन-दहाड़े घूमते हैं बस्ती में
सीना ताने,
कहकहे लगाते
नहीं डरते उजालों से
बल्कि उजाले ही सहम जाते हैं इनसे
अकसर वे धमकाते भी हैं उजालों को
बदल गए हैं अँधेरों के दिन।
४ फरवरी २०१३
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