अनुभूति में
कपिल कुमार की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अच्छा हो
जब कभी हमला किया है
ज़िन्दगी चलने लगी
तितलियों के साथ
कुंडलिया में-
जीते मन तो जीत
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जिन्दगी चलने
लगी
ज़िन्दगी चलने लगी तो सब दिशाएँ थम गईं
प्यार की बूँदें गिरीं तो सब घटाएँ थम गईं
मौसमों के साथ मन व्याकुल-मगन जिस पल हुआ
पंख गीतों के उड़े तो कल्पनाएँ थम गईं
भावनाओं को भरोसा जब मिलन का मिल गया
आसमाँ के साथ सारी अस्मिताएँ थम गईं
जन्म से रिश्ता जुड़ा है प्रीति का, संयोग का
देख खुशियों के सफ़र को वेदनाएँ थम गईं
आह जब निकले यहाँ तो वाह भी होती वहाँ
हर वियोगी की व्यथा सुनकर व्यथाएँ थम गईं
साथ जो भी चल पड़ा, बस हो गए उसके ‘कपिल’
बेवफ़ाई की डगर पर क्यों वफ़ाएँ थम गईं
२४ जून २०१३ |