अनुभूति में
कपिल कुमार की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अच्छा हो
जब कभी हमला किया है
ज़िन्दगी चलने लगी
तितलियों के साथ
कुंडलिया में-
जीते मन तो जीत |
|
जीते मन तो जीत
१
हारे मन तो हार है, जीते मन तो जीत
मन ही तो नफरत करे, मन ही करता प्रीत
मन ही करता प्रीत, सभी कुछ मन से होता
मन करता परिहास, अंत में मन ही रोता
कहें 'कपिल ' कविराय, गिना करता है तारे
भाषा मन की भिन्न, किसी से कभी न हारे
२
खोना या पाना सदा, जीवन के हैं अंग
चोली -दामन की तरह, दोनों रहते संग
दोनों रहते संग, सीप में जैसे मोती
धागे की हर धार, सुई की नोंक पिरोती
कहें 'कपिल 'कविराय, साथ है हंसना रोना
कुछ पाने के हेतु, बहुत कुछ पड़ता खोना
३
अपना अपना सब कहें, नहीं किसी को ज्ञान
जग में अपना कुछ नहीं, सब बाँटें भगवान
सब बाँटें भगवान्, किसी को कम या ज्यादा
राजा बनता एक, दूसरा बनता प्यादा
कहें 'कपिल' कविराय, रात में दिन का सपना
ऊपर वाला खेल, खिलाता रहता अपना
४
रोता हँसता आदमी, आँसू रहते संग
यहीं देखने को मिलें, माया के सब रंग
माया के सब रंग, करोड़ों अरबों वाले
कोई इतना रंक, पड़ें खाने के लाले
कहें 'कपिल' कविराय, फर्क क्यों इतना होता
हँसता रहता एक, दूसरा हर पल रोता
५
उपयोगी हर वस्तु है, कंकर, पत्थर, रेत
कोशिश करने से बना, उपजाऊ हर खेत
उपजाऊ हर खेत, दिया करता है खाना
लिखकर कोई नाम, उगा करता है दाना
कहें 'कपिल' कविराय, सब्जियाँ रखें निरोगी
अब जीवन के हेतु, बना विष भी उपयोगी
४ फरवरी २०१३ |