अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में कपिल कुमार की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अच्छा हो
जब कभी हमला किया है
ज़िन्दगी चलने लगी
तितलियों के साथ

कुंडलिया में-
जीते मन तो जीत

 

अच्छा हो

अच्छा हो, खोटा सिक्का चलने से थम जाए
गंगाजल गंदा बन कर बहने से थम जाए

हरियाली की दुश्मन-सी अब धूप नहीं निकले
परदेसी खुद को सावन कहने से थम जाए

इंसानों की फ़ितरत में आ जाए तब्दीली
दुनिया की सारी रौनक जलने से थम जाए

समझ सके तो आज आदमी अपनापन समझे
दिल में बेगाना कोई बसने से थम जाए

‘कपिल’ किसी के लिए ज़लज़ला, कहीं सुनामी है
कोशिश करते रहो कि वह डसने से थम जाए

२४ जून २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter