अनुभूति में
कपिल कुमार की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अच्छा हो
जब कभी हमला किया है
ज़िन्दगी चलने लगी
तितलियों के साथ
कुंडलिया में-
जीते मन तो जीत
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अच्छा हो
अच्छा हो, खोटा सिक्का चलने से थम जाए
गंगाजल गंदा बन कर बहने से थम जाए
हरियाली की दुश्मन-सी अब धूप नहीं निकले
परदेसी खुद को सावन कहने से थम जाए
इंसानों की फ़ितरत में आ जाए तब्दीली
दुनिया की सारी रौनक जलने से थम जाए
समझ सके तो आज आदमी अपनापन समझे
दिल में बेगाना कोई बसने से थम जाए
‘कपिल’ किसी के लिए ज़लज़ला, कहीं सुनामी है
कोशिश करते रहो कि वह डसने से थम जाए
२४ जून २०१३ |