अनुभूति में
कपिल कुमार की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अच्छा हो
जब कभी हमला किया है
ज़िन्दगी चलने लगी
तितलियों के साथ
कुंडलिया में-
जीते मन तो जीत
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तितलियों के साथ
तितलियों के साथ जब भँवरा ग़ज़ल गाने लगा
हमको तन्हाई का मंज़र और भी भाने लगा
मिल गया हमदम हुई आवारगी से दोस्ती
आईना अपना हमें दुश्मन नज़र आने लगा
आसमाँ से जब कभी दो बूँद टपकीं प्यार की
तब ज़मीं की ज़िंदगी में बीज मुसकाने लगा
हम न करते थे कभी दिल से ज़रा-सी गुफ़्तगू
देखिए अब दिल हमारा छोड़ कर जाने लगा
चाँद-तारे देखते हैं अब हमारा रतजगा
लिखते-लिखते काग़ज़ों पर कोई शरमाने लगा
उम्र के उस पार जाने को ‘कपिल’ तैयार थे
मनचला मन कुछ घड़ी रुकने को बहकाने लगा
२४ जून २०१३ |