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अनुभूति में ज्ञानप्रकाश विवेक की
रचनाएँ -

अंजुमन-
ऐसे कर्फ्यू में
कच्ची मिट्टी से लगन
तमाम घर को
नहीं जहाज़ तो फिर

तेज़ बारिश
बात करता है
मेरी औकात
यहाँ लोगों की आपस में ठनी है
रस्ता इतना अच्छा था
रेत की बेचैन नदी

संकलन में-
धूप के पाँव - तेज़ धूप में

  यहाँ लोगों की आपस में ठनी है

यहाँ लोगों की आपस में ठनी है
ये बस्ती है या कोई छावनी है

उसे मालूम क्या पिकनिक का मतलब
वो निर्धन-सी कोई मजदूरनी है

हुआ है आज घर तकसीम यारो
कि इक दीवार आँगन में बनी है

सिरहाने मीर के बैठा हुआ हूँ,
कोई आवाज़-सी मैंने सुनी है!

जो खुद गलने लगी है मोमबत्ती
मेरे कमरे में उससे रोशनी है

भिखारिन ने कभी सोचा कहाँ है
फटी कितनी जगह से ओढ़नी है!

१६ अप्रैल २००३

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