नहीं जहाज़ तो फिर
नहीं जहाज़ तो फिर बादबान किसके
लिए
मैं पानियों पे लिखूँ दास्तान किसके लिए?
सभा में बैठे हुए लोग सारे
मुजरिम हैं
बदल रहा है तू अपना बयान किसके लिए?
अब इसके बाद न आएगी कोई भी लारी
कि इंतज़ार में हैं मेज़बान किसके लिए?
जिसे भी देखूँ वही चश्मे-नम
खड़ा है यहाँ
बता, करूँ भी तो अश्कों का दान किसके लिए?
अमीर लोग तो बैठे हुए हैं सीटों
पर
तू आप सोच कि है पायदान किसके लिए?
मकीन सारे के सारे तो चल बसे
यारो,
खड़ा हुआ है ये खाली मकान किसके लिए?
किसी को हो के न हो, आसमान को
है पता
कि भर रहे हैं परिन्दे उड़ान किसके लिए?
बड़ी सरलता से पूछा है मुझसे
बच्चों ने
बना रहा हूँ शहर में मचान किसके लिए?
१६ अप्रैल २००३ |