तेज़ बारिश
तेज़ बारिश हो या हल्की, भीग
जाएँगे ज़रूर
हम मगर अपनी फटी छतरी उठाएँगे ज़रूर
अपने घर कुछ भी नहीं उम्मीद का
ईंधन तो है,
हम किसी तरकीब से चूल्हा जलाएँगे ज़रूर
दर्द की शिद्दत से जब बेहाल
होंगे दोस्तो
तब भी अपने-आप को हम गुदगुदाएँगे ज़रूर
इस सदी ने ज़ब्त कर ली हैं जो
नज़्में दर्द की,
देखना, उनको हमारे ज़ख्म गाएँगे ज़रूर
बुलबुलों की ज़िंदगी का है यही
बस फलसफा,
टूटने से पेशतर वो मुस्कराएँगे ज़रूर
आसमानों की बुलंदी का जिन्हें
कुछ इल्म हैं,
एक दिन उन पक्षियों को घर बुलाएँगे ज़रूर!
१६ अप्रैल २००३ |