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अनुभूति में ज्ञानप्रकाश विवेक की
रचनाएँ -

अंजुमन-
ऐसे कर्फ्यू में
कच्ची मिट्टी से लगन
तमाम घर को
नहीं जहाज़ तो फिर

तेज़ बारिश
बात करता है
मेरी औकात
यहाँ लोगों की आपस में ठनी है
रस्ता इतना अच्छा था
रेत की बेचैन नदी

संकलन में-
धूप के पाँव - तेज़ धूप में

  तेज़ बारिश

तेज़ बारिश हो या हल्की, भीग जाएँगे ज़रूर
हम मगर अपनी फटी छतरी उठाएँगे ज़रूर

अपने घर कुछ भी नहीं उम्मीद का ईंधन तो है,
हम किसी तरकीब से चूल्हा जलाएँगे ज़रूर

दर्द की शिद्दत से जब बेहाल होंगे दोस्तो
तब भी अपने-आप को हम गुदगुदाएँगे ज़रूर

इस सदी ने ज़ब्त कर ली हैं जो नज़्में दर्द की,
देखना, उनको हमारे ज़ख्म गाएँगे ज़रूर

बुलबुलों की ज़िंदगी का है यही बस फलसफा,
टूटने से पेशतर वो मुस्कराएँगे ज़रूर

आसमानों की बुलंदी का जिन्हें कुछ इल्म हैं,
एक दिन उन पक्षियों को घर बुलाएँगे ज़रूर!

१६ अप्रैल २००३

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