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अनुभूति में ज्ञानप्रकाश विवेक की
रचनाएँ -

अंजुमन-
ऐसे कर्फ्यू में
कच्ची मिट्टी से लगन
तमाम घर को
नहीं जहाज़ तो फिर

तेज़ बारिश
बात करता है
मेरी औकात
यहाँ लोगों की आपस में ठनी है
रस्ता इतना अच्छा था
रेत की बेचैन नदी

संकलन में-
धूप के पाँव - तेज़ धूप में

  रस्ता इतना अच्छा था

रस्ता इतना अच्छा था
पाँव का छाला हँसता था

कमरे में तारीकी थी
छत पे चाँद टहलता था

पत्थर का था फूल अजब
तितली को धमकाता था

दुनिया के हर मेले में
सच बेचारा तनहा था

गए वक्त का सरमाया
खाकदान में रक्खा था

आज डाकिया अश्कों की
डाक बाँटने आया था

बचपन का फोटो देखा
तब मैं कितना अच्छा था

बुझे हुए सन्नाटे में
दुख का दीपक जलता था

ज्ञानी - ध्यानी सब झूठे
मस्त कलंदर सच्चा था!

१६ अप्रैल २००३

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