अनुभूति में
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल की
रचनाएँ -
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आस का रंग
कल का युग
कालिख जो कोई
चैन के पल
टूट जाने पर
पिघलकर पर्वतों से
मन कभी घर में रहा
हर नया मौसम
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टूट जाने पर
टूट जाने पर भी है बाकी किनारा
किसलिये
आज तक समझा नहीं, पानी का धारा किसलिये
शहर का हिस्सा बनो तो शहर जानेगा तुम्हें
बैठकर घर में अकेलेपन का शिकवा किसलिये
उनको भी अपनाओ, जो तुममें नहीं है दोस्तो
आदमी है एक तो अपना-पराया किसलिये
प्यास किस-किसकी बुझानी है, यह सोचा है कभी
दूर तक मैदान में बहता है दरिया किसलिये
तुममें साहस ही न था, साकार क्या करते उसे
सोचते क्या हो, हुआ नाकाम सपना किसलिये
१३ फरवरी २०१२
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