अनुभूति में
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल की
रचनाएँ -
नई रचनाओं में-
सात मुक्तक
अंजुमन में-
आस का रंग
कल का युग
कालिख जो कोई
चैन के पल
टूट जाने पर
पिघलकर पर्वतों से
मन कभी घर में रहा
हर नया मौसम
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कालिख जो कोई
कालिख जो कोई मन की हटाने का
नहीं है
कुछ फायदा बाहर के उजाले का नहीं है
गर डोर यह टूटी तो बिखर जाएँगे मोती
मनकों का तुम्हें ध्यान है, धागे का नहीं है
करनी हैं बहुत होश की बातें अभी तुमसे
यह वक़्त अभी पी के बहकने का नहीं है
दिल हारने वालों को ही दरकार है काँधा
वैसे तो कोई अर्थ सहारे का नहीं है
मैं दीप इरादों के जलाता हूँ लहू से
अब मन में मेरे ख़ौफ अँधेरे का नहीं है
१३ फरवरी २०१२
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